सोशल मीडिया बहाना, सरकार निशाना ?, पहले श्रीलंका, फिर बांग्लादेश, अब नेपाल।

Protest पहले श्रीलंका, फिर बांग्लादेश, अब नेपाल, क्या एक ही मॉडल से सरकारें गिराई जा रही है, यह सवाल इसलिए उठ रहे हैं, क्योकि श्रीलंका और बांग्लादेश में युवाओं को आगे कर सत्ता परिवर्तन किया गया। नेपाल में हो रहे घटनाक्रम से लगता है कि मॉडल वहीं है भले ही मुद्दे अलग हों।

श्रीलंका में प्रदर्शकारियों ने संसद पर कब्जा कर सरकार गिरा दी थी। बांग्लादेश में भी यहीं पैटर्न दिखा, अब नेपाल में भी ऐसा ही हो रहा है। सोशल मीडिया पर प्रतिबंध के खिलाफ 16 से 26 साल के युवा सड़कों पर उतरे और संसद तक पहुंच गए।

प्रदर्शनकारी शुरू में सोशल मीडिया प्रतिबंध हटाने की मांग कर रहे थे, लेकिन धीरे धीरे प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे तक पहुंच गई।

जियो पॉलिटिकल एक्सपर्ट सुशांत शरीन ने श्रीलंका औऱ बांग्लादेश के मॉडल का जिक्र किया, उन्होने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि …..

अब नेपाल की बारी है ! क्या हमसे कुछ चूक हो गई है कि सड़कों पर गुस्से का ये ज़बरदस्त विस्फोट हो रहा है? बस एक चिंगारी की ज़रूरत है। हमने इसे श्रीलंका, बांग्लादेश और अब नेपाल में देखा है। हम इसे इंडोनेशिया में और म्यांमार में और भी ज़्यादा भयावह रूप में देख रहे हैं। हमने इसे किसान आंदोलन (सरकार की निष्क्रियता) और शाहीन बाग़ के दौरान देखा, जहाँ उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को छोड़कर, हमने सरकारों की निष्क्रियता और आंदोलनों को दबाने के तरीके के बारे में समझ की कमी देखी। अक्सर यही सोचा जाता है कि लोगों को अपनी भड़ास निकालने दी जाए और चीज़ें अपने आप शांत हो जाएँगी। लेकिन अक्सर हमने इन आंदोलनों को और भी बड़े रूप में बदलते देखा है। क्या सरकारें सड़कों पर बन रहे दबाव को नज़रअंदाज़ कर रही हैं या उसे नज़रअंदाज़ कर रही हैं? क्या क़ानून प्रवर्तन एजेंसियों को पता ही नहीं है कि क्या हो रहा है या वे जानकारी को खाद्य श्रृंखला तक नहीं पहुँचा रही हैं? क्या एलईए को इस बात का ज़रा भी अंदाज़ा है कि विश्वविद्यालय परिसरों, अल्पसंख्यक समुदाय के जमावड़ों, विशेष हित समूहों, राजनीतिक समूहों आदि में क्या हो रहा है और क्या अधिकारी अपने अहंकार में सड़कों की अनदेखी कर रहे हैं या उनकी चापलूसी कर रहे हैं, जिससे उपद्रवियों को बढ़ावा मिल रहा है, जैसा कि हमने हाल ही में मुंबई में देखा? ये गुमनाम, चेहराविहीन लोग कहाँ से आ रहे हैं और अचानक केंद्र में आकर वित्तीय राजधानी को बंधक बना रहे हैं? इनका समर्थन कौन कर रहा है? इन्हें कौन फंड कर रहा है? फंडिंग का पता क्यों नहीं लगाया जा सकता? या ये लोग एलईए को पता हैं, लेकिन इन्हें तब तक नज़रअंदाज़ किया जाता है जब तक कि ये बेकाबू न हो जाएँ?